Swatantra Vaartha Sat, 23 Oct 2010, IST
दिल्ली में इस गुरुवार को कश्मीर के राजनीतिक बंदियों की रिहाई अभियान के नाम पर गठित एक एनजीओ द्वारा आयोजित सेमीनार में कश्मीर के उग्र अलगाववादी नेता सैयद अलीशाह गिलानी के साथ माओवादी तथा खालिस्तानी आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखने वाले बुद्घिजीवी भी शामिल हुए। गिलानी के साथ माओवादियों के समर्थक कवि वरवर राव, लेखिका अरुंधती राय, प्रोफेसर अर्ब्दुरहमान, प्रोफेसर सुजाता राव, डॉ शेख शौकत हुसैन, नजीब बुखारी, डॉ एन वेनु आदि ने भी सेमीनार को संबोधित किया। हार्ड लाइन हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता अलीशाह गिलानी ने इस सेमीनार में साफ शब्दों में कश्मीर की आजादी को कश्मीर समस्या का एकमात्र समाधान बताया। वस्तुत: इस सेमीनार का विषय ही यही था कि ‘कश्मीर की आजादी ही एकमात्र रास्ता है’(कश्मीर आजादी : द ऑनलेवी)। गिलानी ने कहा कि कश्मीरियों को आत्मनिर्भर का अधिकार मिलना चाहिए। कश्मीर कोई भारत का आंतरिक मामला है नहीं। यह अंतर्राष्ट्रीय मसला है, इसलिए इस क्षेत्र में शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय ताकतों को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन से अपील की कि वे कश्मीर के मामले में हस्तक्षेप करें और भारत पर दबाव डालें कि वह कश्मीरियों का दमन रोके तथा उनकी आजादी की मांग को स्वीकार करें।
गिलानी ने कश्मीरियों का आह्वान किया कि भारत सरकार ने कश्मीरियों के साथ बातचीत के लिए वार्ताकारों की जो तीन सदस्यीय टीम गठित की है, उसका बहिष्कार करे। कश्मीर के संबंध मेेें बातचीत की केन्द्र सरकार द्वारा अब तक जो भी पहल की गयी है, उसका कोई परिणाम नहीं निकला है, क्योंकि असल में केन्द्र सरकार कश्मीर समस्या का कोई समाधान करना ही नहीं चाहती। उसकी बातचीत की ताजा पहल भी केवल समय काटने के लिए है। इससे कश्मीरियों को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। गिलानी साहब ने न केवल आजाद कश्मीर की मांग को पूरा करने का आह्वान किया, बल्कि उन्होंने आजाद कश्मीर के स्वरूप का भी ब्यौरा पेश किया। उनका कहना था कि आजाद कश्मीर एक सेकुलर राष्ट्र होगा। उसके सेकुलर होने का जो सबसे ब़डा उदाहरण उन्होंने प्रस्तुत किया वह यह था कि प्रभुता सम्पन्न आजाद कश्मीर में गैर मुस्लिमों को शराब पीने की पूरी छूट रहेगी। मुस्लिमों के लिए तो शराब की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा, किन्तु जिनके मजहब में शराब पीना वर्जित नहीं है, उन्हें वहां शराब उपलब्ध करायी जाएगी। और यदि कोई कट्टरपंथी मुस्लिम किसी गैर मुस्लिम की शराब की बोतल त़ोड देता है, तो या तो इस तरह के अपराध करने वाले से उसका हर्जाना दिलवाया जाएगा, नहीं तो सरकार उस नुकसान की भरपाई करेगी।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इस सेमीनार में दिल्ली विश्वविद्यालयों के वे छात्र तथा अध्यापक पूरे जोश के साथ शामिल हुए, जो कश्मीरी अलगाववाद के समर्थक हैं। सेमीनार कक्ष तथा उसके बाहर कश्मीरी अलगाववाद के विरोधी राष्ट्रवादी युवकों का भी अच्छा खासा जमाव था। सेमीनार कक्ष में इन युवकों ने वक्ताआें के राष्ट्रविरोधी वक्तव्यों का जब विरोध किया तो पुलिस ने उनको वहां से बलपूर्वक पक़डपक़ड कर बाहर निकाल दिया। कक्ष के भीतर व बाहर वे ‘भारत माता की जय’, ‘वंदेमातरम तथा राष्ट्र एकता जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थेे। इसके जवाब में वहां एकत्र अलगाववादी युवकों ने भी ‘वी वांट फ्रीडम’, ‘गो इंंंंडिया गो’ तथा ‘कौन करेगा तर्जुमानी, सैयद अलीशाह गिलानी’ जैसे नारे लगाने शुरू कर दिये।
यह कितने आश्चर्य की बात है कि भारत सरकार ने सब कुछ जानते समझते हुए इस तरह के राष्ट्रद्रोही तत्वों को राजधानी के केंद्र में इस तरह के सेमीनार की इजाजत दी। इतना ही नहीं, सेमीनार स्थल पर पुलिस ने उन लोगोंं के खिलाफ ही कार्रवाई की, जो राष्ट्रवाद का समर्थन कर रहे थे और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे थे। सेमीनार कक्ष में अलगाववादियों का विरोध करते हुए करीब ४० लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया, जिन्हें बाद में छ़ोड दिया गया। जाहिर है सेमीनार के आयोजकों को केंद्र सरकार की तरफ से पूर्ण संरक्षण प्राप्त था। शायद अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की रक्षा के नाम पर सरकार ने इस सेमीनार को भी सुरक्षा प्रदान की, किंतु राष्ट्र को विखंडित करने वाले विचार के प्रसार की आजादी अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के अधिकार की अतिविस्तार है, जिसकी किसी भी तरह इजाजत नहीं दी जा सकती।
यहां यह उल्लेखनीय है कि दिल्ली में इस तरह के सेमीनार का आयोजन वास्तव में कश्मीरी आंदोलन को पूरे देश के स्तर पर फैलाने की योजना का अंग है। भारत सरकार पता नहीं इसे समझ नहीं पा रही है या फिर जानबूझकर इस तरफ से आंख मूंदे हुए है कि कश्मीरी अलगाववादी अब इसे पूरे देश की मुस्लिम भावनाआे से ज़ोडना चाहते हैं।
अभी पिछले दिनों देवबंद में जमायतएउलेमाए हिन्द की बैठक में इसी योजना के अंतर्गत कश्मीर का मुुद्दा उठाया गया। कश्मीरी अलगाववादियों की शिकायत है कि इस देश का मुसलमान कश्मीर के सवाल पर क्यों चुप है। दिल्ली में यह सेमीनार दिल्ली के शैक्षिक संस्थानों में प़ढ रहे कश्मीरी छात्रों और अध्यापकों को एकजुट करने तथा कश्मीर के मसले को देशव्यापी आंदोलन का रूप देने के लिये किया गया है। यह एक बहुत खतरनाक शुरुआत है, जो कश्मीर की आग को पूरे देश में फैला देना चाहती है।
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Times of India
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1 comment:
It should be viewed and treated as seriously illegal and anti-government, strongly un-patriotic.
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