27 October, 2010

AP Samachar - 27 October 2010

पाकिस्तान में मस्जिदे किसने तोडीं ?

Swatantra Vaartha  Wed, 27 Oct 2010, IST


बरसात भले ही भारत में हो, लेकिन छतरी पाकितान में खुलना एक सामाय बात है। इसलिए परपरा अनुसार जब अयोया विवाद का मामला यायालय ने सुनाया तो भारत की तरह वहा भी तिकिया का वार उठता दिखाइ पडा। चाराहों आर होटलों में कुछ इस कार से चचा हो रही थी, मानो अयोया पाकितान में ही है, इसलिए उस पर गरमागरम बहस करना पाकितानियों का अधिकार है। इस अवसर पर पाकितान का मीडिया यों चुप रहता ? फसला आते ही पाकितान के चनलों पर धडे से बहस होने लगी। दूसरे दिन अगेजी से लेकर उदू, सिंधी, पजाबी आर पतो के समाचार पों में खबरों के साथ सपादकीय भी कलमब किये गए थे, लेकिन एक सवाल ऐसा भी था, जिस पर सभी एक मत थे। अखबार आर चनल सहित आम जनता में यह पूछा जा रहा था कि सबसे अधिक मजिदें किसने तोडीं ? मदिर, चच आर सिनेगोग तोडने वाले तो केवल मुलिम आकाता ही थे। इस पर विवाद इसलिए नहीं हो सकता है, योंकि डाटर इकबाल जसे सि कवि ने वय इस बात को वीकार किया ह। इतना ही नहीं, उहोंने अपनी पुतक शिकवा आर जवाबे शिकवा में इसका वितत विवरण किया ह। वे इस साइ को वीकार करते हए लिखते है
पर तेरे नाम पे तलवारें उठाइ किसने?
बात जो बिगडी हइ थी वो बनाइ किसने?
दी अजानें कभी यूरोप के कलीसाआें (चच) में
कभी अफीका के तपते हए सहराओ (रेगितान) में
इस लबी कविता में डाटर इकबाल ने आह से शिकायत करते हए कहा कि तेरे पथ इलाम के चार के लिए हमने यु लडे, चच में घुसकर अजानें दीं। दुनिया के सभी मतपथों के पवि थलों पर हमने हमले किये, उनको वत किया आर उनके मानने वालों का कल किया। फिर भी तू हमसे स नहीं हआ?
इतना जान लेने के बाद राम जमभूमि का फसला देने वाले तीनों यायाधीशों को यह कहने की आवयकता नहीं ह कि मजिद की खातिर राम मदिर को तोडा आर अब उसीे मजिद के नाम पर मुलिम दावा कर रहे ह कि हमने जो कुछ किया, अपनी परपरानुसार किया आर बिकुल ठीक किया। पाकितान के अधिकाश मुसलमान राम जमभूमि के मामले में दिये गए निणय को कानूनी नहीं राजनीतिक फसला मानते ह। फसला आने के तुरत बाद हामिद मीर ने अपने टीवी शो ‘कपीटल टाक’ के फेसबुक पर आम पाकितानी लोगों की राय जानने की कोशिश की। पाकितानियों के खुुश होने का तो सवाल ही नहीं था, लेकिन हामिद मीर एक टिपणी को लेकर चकित थे, जिसमें कहा गया था कि इलाहाबाद कोट के फसले ने मुसलमानों को बचा लिया। कुछ ने दबे शदों में वीकार किया कि जो फसला आया वह गलत नहीं ह। जिओ टीवी ने मुलिम यायाधीश एसयूखान के फसले को ाथमिकता दी, जो हिदू आर मुलिम दोनों को अयोया की भूमि बराबर से देने पर सहमत थे। पाकितानी मुसलमानों में सुी बरेलवी विचारधारा के लोग अधिक ह। ३० सितबर की रात को जिओ टीवी के यूज बुलेटिन पर मुीबर्रेहमान नामक मालाना को अपनी राय देने के लिए बुलाया गया। उहोंने फसले को भले ही राजनीतिक बताया, लेकिन यह कहा कि मुसलमान अपनी भावनाआें पर काबू रखें आर किसी कार की हिंसा में भाग न लें। १९९२ में जब ढाचा गिराया गया था, उस समय लोगों ने अपनी तीव तिकिया य की थी। ६ दिसबर ९२ की घटना के पचात पाकितान में जितने हिदू मदिर तोडे गए उतने विभाजन के समय भी नहीं तोडे गए थे। लेकिन इस बार मामला उलटा दिखाइ पडा। पाकितानी फितरत के अनुसार तो मदिरों पर उनका कहर टूटना वाभाविक ही था। लेकिन न जाने ऐसा यों नहीं हआ ? या तो पकितान में अब मदिर बचे ही नहीं, जिहें तोडा जाए, लेकिन ऐसा नहीं ह। उगलियों पर गिने जाने वाले मदिर तो अवय होंगे ही, लेकिन पाकितानियों को अपने यहा तोडी जाने वाली मजिदें याद आ गइ।
भूखे भेडिये को जब शिकार नहीं मिलता ह, तो वह अपनी जमात को ही धर दबोचता ह। इसी कार जिनकी आदत मदिर, चच, अगयारी आर सिनेगोगा तोडने की हो वह जब उहें नहीं दिखाइ पडते ह, तो अपनी मजिदों को ही निशाना बना लेते ह। इस बार भारत के लिए तिकिया कम थी आर पाकितानी अपने यहा घटने वाली घटनाआें पर अधिक आममथन कर रहे थे। न जाने यों पाकितानी अपने पुराने रवये से हटकर इस पर बोलने लगे आर लिखने लगे कि हम भारत की बात बाद में करेंगे। इस समय तो यह बताओ कि पाकितान में मजिदें तोडने वाले कान ह ? यहा तो १९९२ में हिदू मदिरों को चुनचुनकर न किया। जहा कोइ हिदू दिखा उसे कल कर दिया आर इस कार का वातावरण बना दिया कि बस जिहाद का समय आ गया ह, लेकिन पिछले १८ वषा] में या हआ ? यहा अब हिदू आर इसाइ तो मुटठी भर भी नहीं बचे ह। यहदियों का तो नामोनिशान भी नहीं ह, फिर पाकितान में मजिदों को वत करने वाले लोग कान ह? पाकितान के दनिक डान आर फटियर पोट ने अपने सपादकीय में लिखा कि हिदुथान पर उगली उठाने से पहले अपने मन में झाककर देखो ? वहा के शासकों की आलोचना करने से पहले अपनी सरकारों को देखो जो आतकवादी बनकर मजिदों को अपनी हवस का निशाना बनाए हए ह।
३० सितबर के बाद अयोया का फसला आते ही न जाने यों पाकितानियों के दय में परिवतन की लहर दाड गइ आर भारत को कुछ कहने के थान पर अपने यहा की थिति पर विचार करने के लिए ेस ने लोगों को झिंझोडना ारभ कर दिया। पाक मीडिया पर तिकिया य करते हए लदन से काशित दनिक जग ने बाबरी करण को लेकर पाकितानियों को अपने यहा घटने वाली घटनाआें पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया ह। भारत में तो एक मजिद पर आसू बहा रहे ह, लेकिन मुलिमों के देश पाकितान में तो अब वय मजिदें आसू बहा रही ह। इलामी देश पाकितान की मजिदें विलाप कर रही ह। ३० सितबर की रात ९ बजे जिओ टीवी के यूज बुलेटिन में मुती रहमान कह रहे थे कि म १९९२ में ‘बाबरी मजिद’ के गिराए जाने के बाद पाकितान में हिदू मदिरों पर किये गए हमलों को याद करता ह। पाकितान में चरमपथी सगठनों ने उसका खूब फायदा उठाया। उस समय चरमपथी इस बात को साबित करना चाहते थे कि भारत के सभी हिदू भारत में बसने वाले सभी मुसलमानों के दुमन ह, जो सच नहीं था। ९/११ की घटना ने सारी दुनिया को बदल दिया। जिनकी जाि पर इसानों के खून का चका लग गया था, वे अमेरिका की तरफ मुड गए। २००७ में मुशरफ के आदेश पर पाकितानी सेना ने इलामाबाद की लाल मजिद पर जब हमला किया तो पाकितानी ‘बाबरी मजिद’ को भूल गए। अरे यह या, अपने इलामी देश पाकितानी में अपनी ही सेना ारा मजिद पर हमलाअब हम किस मुह से बाबरी की आलोचना कर सकते ह। वहा तो मदिर की माग थी, लेकिन यहा तो केवल साा को कायम रखने की शतानी भूख। साा के लिए मदिर, चच आर सिनेगोग को तोडने वाले मजिद पर भी हमला करने से नहीं चूके। या उहें इलाम ने यही सिखाया ? मदिर को ा करने के आकोश को हमला कहा जाने लगा, लेकिन यहा तो हकूमत के लिए मजिद को गिरा दिया गया। मजिद में १५० नमाजियों को गोलियों से भून दिया गया। मजिद में चली यह पहली गोली नहीं थी। करवादी सुी मुसलमानों ने अहमदिया पथ की एकएक मजिद को ढहा दिया। उनके मुसलमान कहने पर पाबदी लगा दी गइ। जुफिकार अली भुाे ने मुनीर आयोग थापित कर उहें गरमुलिम घोषित कर दिया। पिछले दिनों रबवा में फिर वही नाटक दोहराया गया।
पाकितान की कर सुी तलीगी जमातों ने शियाओ को भी नहीं बशा। इससे पहले दुनिया में किसी मजिद में नमाज पढ रहे लोगों पर पीछे से आकर गोलिया दागने की घटना नहीं घटी, लेकिन पाकितानी में एक नहीं, पिछले दस वष में १५७ मजिदों में नमाजियों पर हमला करके मजिदों को ररजित कर दिया। उनकी मजिदें गिरा दी गइ। मीडिया का कहना ह कि पाकितान में कम से कम २०० मजिदें जिहादियों आर जनूनियों ने शहीद कर दीं। पाकितान में पाचों समय की नमाज पुलिस के पहरे में पढी जाती ह। ‘रियू आफ रिलीजन’ नामक मासिक ने अपने जुलाइ २०१० के अक में प २६ पर ‘मडर इन दी नेम आफ आह’ तथा ‘बेजन अटेकस आन लाहार’ नामक लेख में वह सब कुछ कह दिया ह, जो पाकितान के करवादी आर वहा की सरकार की सोच ह। पाकितान भले ही मुलिम रा हो, लेकिन उसकी हरकतें वही ह, जो कल तक मय युग के मुसलमानों की थीं। इसलिए मजिदों के ति उनकी जो हरकतें ह, वे कोइ नइ नहीं ह। वे आज वही सब कुछ कर रहे ह, जो कल इकबाल के शदों में मुसलमान किया करते थे। अयोया के वतमान फसले ने उन बुजीिवी आर रावादी मुसलमानों को सोचने पर मजबूर कर दिया ह कि सवाल बाबरी का नहीं, पाकितान की मजिदों का ह। पता नहीं यह खेल कब तक चलता रहेगा।

Swatantra Vaartha
The Pioneer

1 comment:

DR.P.L.NAWALKHA said...

ESSENTIALLY INDIA AND PAKISTHAN ARE TWINS BORN THROUGH TEST TUBE METHOD ,IN THOSE DAYS WHEN SCIENCE WAS NOT ADVANCED.TWO CHILDREN OF COMMON PARENTS WITH ILL-WILLED /GYNECOLOGIST/MIDWIFE OF BRITISH ORIGIN CAN NOT HAVE TOTALLY SEPARATE MINDSETS.THEIR MINDS CONTINUE TO HAVE LOVE-HATRED RELATIONSHIP,AS IS OFTEN ENCOUNTERED IN SIBLINGS. TWO CHILDREN HAD IN BORN DEFORMITY OF DISPARITY OF ONE BEING SECULAR AND ANOTHER RELIGIOUS COUNTRY. THIS DEFORMITY TOOK A SHAPE OF PERPETUAL DISORDER/DISASTER,BECAUSE OF PERMISSIVE MINDSET OF MUSLIM FAITH INGRAINED IN PAKISTHAN AND RESTRICTED PERMISSION OF RELIGION IN INDIA. HAD AYODHYA LIKE SITUATION TOOK PLACE IN PAKISTHAN ,THERE WOULD HAVE BEEN NO CONCERN,NO HUE AND CRY. SINCE INDIA IS SECULAR,EVEN DOG OF PAKISTHAN CAN DARE TO BARK ON A SCRATCH ON A CULPRIT MUSLIM IN INDIA.CONTRARY TO THIS IF A GENUINE HINDU IS MURDERED OR TEMPLE IS DEMOLISHED IN PAKISTHAN,ALL INDIANS RIGHT FROM PRESIDENT TO COMMON MEN AND HUMAN RIGHTIST ORGANISATIONS WILL KEEP THEIR MOUTH SHUT. DEMOLITION OF TEMPLES/MASJID,FOR ADMINISTRATIVE REASONS IS THE FUNCTION OF THE STATE.UNUSUAL HIGHLIGHT OF BABRI DEMOLITION IS A BARBARIC ACT BY SO CALLED SANER SOCIETY.

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