22 September, 2011

भारत-चीन तनातनी में एक और मुद्‌दा ज़ुडा

Swatantra Vaartha Thu, 22 Sep 2011, IST

चीन और भारत के बीच संबंधों में तनातनी का एक और कारण पैदा हो गया है। यह नया कारण है वियतनाम के साथ उसके समुद्री क्षेत्र में तेल एवं गैस की खोज के लिए भारत द्वारा किया गया एक समझौता। दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के बारे में समझा जाता है कि उसकी तलहटी में तेल और गैस के विशाल भंडार छिपे हुए हैं। भारत की सरकारी तेल एवं गैस एजेंसी ‘ओएनजीसी’ ने २००६ में वियतनाम पेट्रो के साथ इस क्षेत्र में तेल एवं गैस की खोज का एक समझौता किया था। अब इस खोज कार्यक्रम को जब आगे ब़ढाने का काम शुरू हुआ है, तो चीन ने भारत को धमकाना शुरू कर दिया है। 

अभी पिछले सप्ताह उसने परोक्ष चेतावनी दी थी कि भारत दक्षिण चीन सागर से दूर रहे, लेकिन इस सप्ताह २० सितंबर को चीनी विदेश विभाग के प्रवक्ता होंगली ने कहा कि दक्षिण चीन सागर और उसके द्वीपों पर चीन का संप्रभु अधिकार है, अब अगर कोई दूसरा देश इस क्षेत्र में चीन सरकार की इजाजत के बिना तेल और गैस की खोज जैसी गतिविधियों में शामिल होता है, तो उसे हमारी संप्रभुता और देशहित के खिलाफ समझा जाएगा, यानी इसे चीन की संप्रभुता पर सीधा हमला माना जायेगा। भारत ने पहले तो चीन की इस तरह की चेतावनी को नजरंदाज कर दिया था, किंतु अब उसने भी क़डा रुख अपनाते हुए चीन को चेतावनी दी है कि वह पाक अधिकृत कश्मीर से अपने को दूर रखे। पाक अधिकृत कश्मीर भारत का हिस्सा है, जिस पर पाकिस्तान ने जबरिया अधिकार जमा रखा है, इसलिए चीन को उस क्षेत्र से दूर रहना चाहिए।

पाकिस्तान का उस क्षेत्र पर कब्जा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है। जहां तक वियतनाम के समुद्री क्षेत्र में तेल की खोज का मामला है, तो वह समुद्री क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय है, उस पर चीनी संप्रभुता का दावा गलत है। भारत ने वियतनाम के साथ जो समझौता किया है, वह पूरी तरह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुकूल और विधि सम्मत है, इसलिए भारत का उससे पीछे हटने का सवाल ही नहीं उठता। खबर है कि चीन ने यह चेतावनी दी है कि वह हिन्द महासागर के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में १० हजार किलोमीटर तक के इलाके में अपनी खनन गतिविधियां शुरू करेगा।

चीन का भारत के साथ शुरुआती तनाव तिब्बत को लेकर था। चीन ने तिब्बत पर जबरिया अधिकार कर लिया। भारत ने यद्यपि इस पर कोई आपत्ति नहीं की, लेकिन उसने तिब्बती सरकार के मुखिया दलाई लामा को अपने देश में रहने की इजाजत दी, जहां से वह तिब्बत की अपनी प्रवासी सरकार चला रहे हैं। तिब्बत पर चीनी कब्जे के कारण भारत के साथ चीन का सीमा विवाद ख़डा हो गया, क्योंकि भारत और तिब्बत के बीच कभी कोई स्पष्ट सीमा रेखा थी ही नहीं। भारत ने तिब्बत को बचाने का कोई प्रयत्न नहीं किया, लेकिन चीन ने उसके बहाने भारतीय क्षेत्र पर भी अपना कब्जा जताना शुरू कर दिया और फिर १९६२ में तो उसने सीधे भारत पर हमला कर दिया और उसकी हजारों वर्ग किलोमीटर जमीन ह़डप ली। अभी भी वह भारत के उत्तर पूर्वी प्रांत अरुणाचल पर अपना दावा जताता रहता है।

चीन शुरू से ही साम्राज्यवादी विस्तारवादी नीति पर चल रहा है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद करके उसने पाकिस्तान द्वारा अपने कब्जे में लिये गये कश्मीर के एक भूक्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया। पाकिस्तान ने कोई विवाद ख़डा करने के बजाए उसे चीन को उपहार में दे दिया। इसमें उसका अपना जाता ही क्या था, ‘माले मुफ्त दिले बेरहम’। भारत से छीनी गयी जमीन का एक हिस्सा चीन को सौंप देने में उसे कोई हिचक नहीं हुई। भारत का दोष यही है कि वह चीन के सारे पाप माफ करता रहा। पता नहीं डर वश या लापरवाही वश उसने कभी चीन के गैरकानूनी विस्तारवाद का विरोध नहीं किया। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सैन्य उपस्थिति एकदो वषा] से नहीं दशकों से बनी हुई है, लेकिन भारत ने कभी इस पर आपत्ति दर्ज नहीं करायी। अपने कब्जे में लिये गये कश्मीर भू क्षेत्र में उसने अनेक सैनिक व असैनिक निर्माण कार्य करा रखा है, किंतु भारत ने कभी अपनी औपचारिक आपत्ति दर्ज नहीं करायी। अभी उसने पाक अधिकृत क्षेत्र से चीन को दूर रहने की चेतावनी भी तब दी है, जब चीन ने भारत को चीन सागर क्षेत्र से बाहर रहने के लिए चेतावनी दी है।

चीन वास्तव में समूचे चीन सागर पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है। इसलिए वह उस क्षेत्र में जगहजगह फैले छोटेब़डे द्वीपों पर अपना भूभाग बता रहा है। उसका कहना है कि तमाम पुराने दस्तावेज तथा ऐतिहासिक साक्ष्य इस पूरे इलाके को चीन का सिद्ध करते हैं। भारत वियतनाम से मिलकर जिस क्षेत्र में तेल और गैस का खोज अभियान शुरू करने जा रहा है, वह वियतनाम की अपनी समुद्र सीमा तथा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में है। यह इलाका चीन की अपनी समुद्री सीमा से काफी दूर है। इस पूरे दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर चीन के दावेदारी से दक्षिण पूर्व एशियायी क्षेत्र के तमाम देश चिंतित हैं, लेकिन भारत की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए कि उसने वियतनाम के साथ तेल खोज का समझौता करके चीन सागर के इस अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज की है। पिछले दिनों चीन ने इस क्षेत्र में एक भारतीय युद्धपोत की राह रोकने की कोशिश की थी, जो वियतनामी नौसेना के साथ एक युद्धाभ्यास के लिए वहां गया हुआ था।

पूरे दक्षिण चीन सागर पर चीनी अधिकार की दावेदारी को खारिज करते हुए भारत ने इस पूरे क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय जहाजों की मुक्त आवाजाही का समर्थन किया है। इस मामले में वियतनाम, जापान व फिलीपिंस आदि देश भी चीनी दावे के खिलाफ हैं और पूरे समुद्री क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र मानते हैं। भारत पहली बार इस मामले में आगे आया है। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि भारत को वहां दक्षिण चीन सागर में जाकर अपनी टांग नहीं अ़डानी चाहिए थी, लेकिन भारत के लिए इस तरह के कदम उठाना अनिवार्य हो गया है। चीन जिस तरह से भारत को चारों तरफ से घेरने की कोशिश में लगा है, उसका एक ही इलाज है कि भारत भी अपनी समुद्री सीमा से बाहर निकलकर मोर्चा संभाले और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के दायरे में चीन की साम्राज्यवादी विस्तारवादी कोशिशों को रोकने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का साथ दे।

Courtesy : Swatantra Vaartha (Hindi Daily)  

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