24 September, 2011

गरीबों की सहायता के लिए बनने वाली योजनाएं

Swatantra Vaartha Sat, 24 Sep 2011, IST

गरीब जनता के नाम पर सरकारें जो योजनाएं चलाती हैं, उसका मकसद केवल इतना ही नहीं होता कि उसे सरकार और उसे चलाने वाली पार्टी की लोकप्रियता ब़ढेगी और उसका लाभ चुनावों में वोट के रूप में प्राप्त होगा, बल्कि अब इन्हें इसलिए भी शुरू किया जाता है कि इसके माध्यम से पार्टी कार्यकर्ताआें को आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके, जिससे चुनावों के समय पार्टी के लिए काम करने वालों की एक फौज तैयार रहे। 

अब मुफ्त में कोई कार्यकर्ता किसी पार्टी के लिए काम करने के लिए तैयार नहीं है। अब किसी विचारधारा या किसी सामाजिक राजनीतिक बदलाव के लिए कोई कार्यकर्ता किसी पार्टी से नहीं ज़ुडता, क्योंकि तमाम पार्टियों व उनके नेताआें का भी ऐसा कोई लक्ष्य नहीं रह गया है। यदि पार्टियां केवल सत्ता शक्ति और धन लाभ के लिए राजनीति करती हैं, तो उनके लिए काम करने वाले कार्यकर्ता भी उसमें कुछ हिस्सेदारी चाहते हैं। पार्टियों के पास स्वयं अपना ऐसा कोई ब़डा कोश नहीं होता कि हर उपयोगी कार्यकर्ता को कोई नियमित रकम दी जा सके, इसलिए सरकारें ऐसी योजनाएं बनाती हैं कि सरकारी धन का कुछ हिस्सा नियमित रूप से उन कार्यकर्ताआें की जेब में भी जा सके। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत सस्ते अनाज, तेल, आदि के वितरण की योजनाएं अथवा ग्रामीण रोजगार योजना ऐसी ही योजनाएं हैं। इन योजनाआें का बमुश्किल ५० प्रतिशत लाभ गरीबों को मिल पाता है, बाकी सारा धन कार्यकर्ताआें की जेब में चला जाता है। सरकारी वितरण प्रणाली में वितरण का अधिकार प्राय: पार्टी के कार्यकर्ताआें को ही मिलता है, जो खुले आम वितरण के लिए आने वाले अनाज व तेल आदि का ब़डा हिस्सा काले बाजार में बेंच देते हैं। ग्रामीण रोजगार क्षेत्र में भी यही हो रहा है।

अभी अपने आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्‌डी ने गरीबों को एक रुपया प्रतिकिलो चावल देने का श्रीगणेश किया। अभी तक इस योजना में दो रुपये प्रति किलो चावल उपलब्ध कराया जा रहा था, किरण कुमार ने उसे एक रुपया कर दिया। यह चावल गरीबी रेखा के नीचे जीने वालों यानी उनको जिनकी दैनिक आमदनी प्रतिदिन अधिकतम ३२ रुपये तक की है के लिए है। राज्य सरकार के आंक़डों के अनुसार इसका लाभ २२६ कऱोड बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे वाले) परिवारों को प्राप्त होगा। परिवार के सदस्यों की औसत संख्या यदि ४ माने, तो केवल बीपीएल वर्ग की जनसंख्या ९०४ कऱोड हो जाती है, जो राज्य की कुल जनसंख्या से अधिक है। इस वर्ष की जनगणना के प्रारंभिक आंक़डों के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या ८४६ कऱोड है। जाहिर है कि राज्य में फर्जी बीपीएल काडा] की संख्या बहुत अधिक है, जिस पर जारी होने वाला सस्ता चावल केवल काले बाजार में बिकने के लिए जाएगा। इसका लाभ उसी को मिलेगा, जिसे सरकारी तंत्र विरतण के लिए नियुक्त करेगा। 

यह एक नमूना है, इसके आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि सरकारी तंत्र कैसे काम करता है। देश या प्रदेश की गरीब जनता को स्वयं रोटी कमाने लायक बनाने या उसे स्थाई रोजगार दिलाने की योजना बनाने के बजाए उनके लिए दान की व्यवस्था इसीलिए की जाती है कि इसके आधार पर एक ब़डी जनसंख्या को सदैव गरीब और सत्ता का एहसानमंद बनाए रखा जाए तथा साथ ही इस बहाने सार्वजनिक धन पर अपने पार्टी कार्यकर्ताआें की फौज का भी पोषण किया जा सके।

Courtesy : Swatantra Vaartha (Hindi Daily)

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