24 September, 2011

भ्रष्टाचार से ब़ढी महंगाई

Swatantra Vaartha Sat, 24 Sep 2011, IST

अन्ना हजारे ने महंगाई का कारण भ्रष्टाचार बताया है। पिछले दिनों संसद में भी महंगाई को लेकर काफी शोर शराबा हुआ था। भाजपा के नेता और पूर्व केन्द्रीय वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने भी कहा कि महंगाई भ्रष्टाचार के कारण ब़ढी है। इसलिए भ्रष्टाचार पर काबू पाने के उपाय तुरंत किये जाने चाहिए, लेकिन सरकार महंगाई पर काबू पाने के लिए ब्याज दरें ब़ढा देती है। 

पिछले साल के मार्च से लेकर अब तक अर्थात अट्‌ठारह महीनों में रेपो और रिवर्स रेपों की दरों में ग्यारह बार ब़ढोत्तरी की गयी है। लेकिन महंगाई इसके बावजूद ब़ढती जा रही है और आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। सांसदों ने तो अपने वेतन भत्ते और निधि को ब़ढाकर अपना कल्याण तो कर लिया है। सरकारी कर्मचारियों का भी महंगाई भत्ता सरकार ने सात फीसदी ब़ढा दिया है, लेकिन देश की बाकी जनता कैसे जियेगी। आम आदमी की आमदनी ब़ढ नहीं रही है, लेकिन उस पर लगने वाले करों का भार लगातार ब़ढता गया है। जनता यह सब भी बर्दाश्त कर सकती है, लेकिन सरकार के मंत्री और अधिकारी जिस तरह के ब़डेब़डे घपले, घोटाले कर रहे हैं, उससे वह अपने को ठगी हुई महसूस कर रही है। भ्रष्टाचार राजकाज का जिस तरह से हिस्सा बन गया है, उसे रोकने के लिए अभी तक कोई कारगर उपाय नहीं किया गया है। इससे जनता में मंत्रियों और सांसदों के खिलाफ संदेह गहरा रहा है, क्योंकि उनकी सम्पत्ति तो दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से ब़ढ रही है और जनता महंगाई की मार से कराह रही है। भ्रष्टाचार राजनीतिक सत्ता के शिखर पर पहुंच कर अब देश की जनता को ही मुंह च़िढा रहा है। जिन लोगों पर इसे रोकने की जिम्मेदारी है, वे ब़डी बेशर्मी से अपनेअपने नेताआें का बचाव करते हैं। कॉमन वेल्थ गेम्स घोटाले में कैग की रिपोर्ट आने के बाद अब जिस तरह से कांग्रेसी नेता दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का बचाव कर रहे हैं, वह राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा है। इससे पहले मुख्य सतर्कता आयुक्त के पद पर दागी अधिकारी पीजे थामस की नियुक्ति से लेकर २जी स्पेक्ट्रम मामले में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री राजा का जिस तरह से कांग्रेस और उनके सहयोगी मंत्रियों ने बचाव किया, वह इसका शर्मनाक उदाहरण है। भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस सहित सभी पार्टियों का रवैया एक जैसा ही है। कर्नाटक में भाजपा ने यदुरप्पा और रेड्‌डी बंधुआे का बचाव करके साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार के मामले में हम सभी दल एक जैसे हैं। क्षेत्रीय दलों ने तो पहले से ही भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित कर रखे हैं। वास्तव में हमारी सभी समस्याआें की ज़ड भ्रष्टाचार ही है।

यूपीए की सरकार यह दावा कर रही है कि वह देश का समावेशी विकास कर रही है। लेकिन महंगाई जिस रफ्तार से ब़ढ रही है, उससे देश के गरीब लोगों की आमदनी भी बाजार के जरिए ब़डीब़डी कम्पनियों के पास पहुंच रही है। महंगाई पर नियंत्रण करना है, तो जमाखोरी और मुनाफाखोरी पर लगाम लगानी होगी। पर इसके लिए न यूपीए तैयार है और न तो विपक्षी पार्टियों की सरकारें कोई कदम उठाना चाहती हैं। भ्रष्ट नेता ही जमाखोरी और मुनाफाखोरी को ब़ढावा दे रहे हैं और वे इस कमाई में हिस्सेदार हो गये हैं। इसलिए सरकार अरबोंखरबों की योजनाएं चलाकर भी लोगों का पूरा कल्याण नहीं कर सकती, क्योंकि भ्रष्टाचार के कारण उसकी नीतियां कभी साफ नहीं हो सकती हैं। आज कोई योजना या कार्यक्रम ऐसा नहीं हैं, जिसमें भ्रष्टाचार नहीं है। २जी स्पेक्ट्रम, कॉमन वेल्थ गेम्स से लेकर मनरेगा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन तक तमाम योजनाएं भ्रष्टाचार की गिरफ्त में हैं। ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार दूसरे देशों में नहीं है, लेकिन वहां भ्रष्ट नेताआें और अधिकारियों को क़डी सजा मिलती है। कुछ लोगों को तो फांसी पर भी लटकाया गया है। पर हमारे यहां जिस बेशर्मी से देश के राजनेता भ्रष्ट मंत्रियों और अधिकारियों का बचाव करते नजर आते हैं, उसकी मिसाल खोजनी मुश्किल है।
देश के महानगरों में हमारे राजनेताआे और अधिकारियों की शानदार कोठियां, कारें और तमाम नामी बेनामी सम्पत्तियां इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जैसे कानून उनके लिए बनाये ही नहीं गये हैं। उधर राज्यों के लोकायुक्तों और कैग की रिपोर्ट इस बात का सबूत है कि किस तरह से जनता के धन की बंदरबाट और लूट हो रही है। उत्तर प्रदेश हो या कर्नाटक अथवा महाराष्ट्र सब जगह सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की शिकायतें हैं। लेकिन महंगाई और भ्रष्टाचार पर हमारे राजनीतिक दल मिल जुलकर कभीकभी विलाप भी करते हैं। संसद के मानसून सत्र में सत्ता पक्ष और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा दोनों के समर्थन से एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें सरकार की जिम्मेदारी तय किये बिना महंगाई पर चिंता जाहिर की गयी पर महंगाई के मुद्दे पर जब नियम १८४ के तहत वामदलों के संशोधन प्रस्ताव पर मतदान की नौबत आयी तो यूपीए और भाजपा एक साथ हो गयी और बसपा सदन से बाहर चली गयी। इसलिए यह प्रस्ताव प्रचंड बहुमत से खारिज हो गया।

यूपीए सरकार के सत्ता संभालने के बाद से महंगाई के मुद्दे पर संसद में कम से कम दस बार चर्चा हो चुकी है, लेकिन इन चर्चाआें का कुछ खास नतीजा नहीं निकला। हालांकि पिछले वर्ष भी दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत एक प्रस्ताव के जरिए सरकार से कहा गया था कि महंगाई की मार से आम आदमी को बचाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाये। लेकिन, उसने महंगाई पर अंकुश लगाने के जरूरी कदम उठाने के बजाय पेट्रो उत्पादों की कीमतों में ब़ढोत्तरी ही की। लेकिन इन उत्पादों पर टैक्सों की कटौती के लिए कोई तैयार नहीं है। केन्द्र और राज्य सरकारों ने पेट्रो उत्पादों पर भारी टैक्स लगा रखे हैं। उनकी कटौती करके वे जनता पर महंगाई का बोझ कम कर सकते हैं। दरअसल हमारे नीति निर्माता चाहते क्या हैं, यह कोई नहीं जानता। हमारे नेता एक तरफ तो वे जनसेवा का ढोंग करते हैं और दूसरी तरफ सत्ता के बेजा इस्तेमाल पर किसी तरह की लगाम लगाने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि जन लोकपाल बिल की जगह सरकार एक ऐसा लोकपाल बिल लोकसभा में पेश किया है, जिसमें भ्रष्टाचारियों की अपेक्षा भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले लोगों को ही अधिक सजा देने की व्यवस्था है।

भ्रष्टाचार और लूट खसोट की ह़ोड में सभी दलों के नेताआें ने अपनी तिजोरियां भरी हैं। विदेशी बैंकों के खातों में भारी रकमें जमा की, घोटाले पर घोटाले किये, अपनी भावी पी़ढयों का भविष्य सुरक्षित किया और जब देश दिवालियेपन की कगार पर आ ख़डा हुआ तो अपने खर्चे कम करने की बजाय राष्ट्र की अस्मत को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और अमेरिकी आकाआें के हाथ गिरवी रख दिया। अपने विशाल बाजार को ही विदेशी कम्पनियों द्वारा उपयोग की सामग्रियां बेचने और शोषण करने के लिए मुक्त कर दिया। अब खुदरा बाजार उनके हवाले किया जा रहा है।

अब यह बात जाहिर हो गयी है कि दुनिया के ७० टैक्स हैवेन देशों के बैंकों में भ्रष्ट भारतीय नेताआें और अधिकारियों के गुप्त खाते हैं। स्विट्‌जरलैंड के बारे में हो हल्ला होने के बाद से बहुत लोगों ने अपना काला धन निकालकर दूसरे देशों के बैंकों में जमा करवा दिया है। अनुमान है कि हमारे देश के ३०० लाख कऱोड रुपये लूटकर विदेशी बैंकों में जमा किये गये हैं। देश में व्याप्त गरीबी, लाचारी और भुखमरी का यह भी एक ब़डा और प्रमुख कारण है। अगर इस धन को वापस लाकर देश के विकास में लगाया जाए, तो काफी लोगों को रोजगार मिलेगा और आधारभूत ढांचा विकसित हो पायेगा। लेकिन यूपीए की सरकार ने अभी तक विदेशों में जमा काले धन को राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। अमेरिका को छ़ोड दिया जाए तो कुछ छोटे देशों ने भी अपने काले धन को हासिल करने में सफलता पायी है। 

स्विट्‌जरलैंड की एक पत्रिका ने पिछले दिनों दुनिया के १४ ब़डे नेताआे के नाम छापे थे, जिनके खाते स्विट्‌जरलैंड के बैंकों में हैं। उनमें अपने देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री का नाम भी था। शायद यही कारण है कि यूपीए सरकार काले धन के खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रही है। इस मामले में भाजपा का रवैया भी पाकसाफ नहीं है, क्योंकि उसके भी कई नेताआें की कम्पनियों का मारीशस की कम्पनियों के माध्यम से कारोबार होता है, जिसमें काला धन खपाया गयाहै। इस तरह से लखपति कऱोडपति और कऱोडपति अरबपति हो जाए और मेहनतकश भूखा सोये तो ऐसे समाज में शांति कैसे कायम हो सकती है। जनता को न्याय और रोजीरोटी नहीं मिलेगी तो आतंकवादी और नक्सली हिंसा पर लगाम कैसे लगायाी जा सकती है। आज जो काम सरकार को करना चाहिए उसके लिए अदालतों को आदेश देना प़डता है। इसलिए राजनेताआें के राज चलाने की क्षमता पर सवाल क्यों नहीं उठाये जाने चाहिए।  

भ्रष्ट नेताआे, अधिकारियों और कर्मचारियों की सम्पत्ति जब्ती का कानून क्यों नहीं बनाया जाता। इसलिए अब जनता की आवाज को अन्ना हजारे या स्वामी रामदेव जैसे गैर राजनीतिक व्यक्तियों को उठाना प़ड रहा है। राजनीतिक दलों की साख उनके सत्तासीन नेताआे द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार से लगभग खत्म हो गयी है। जनता नये विकल्प की तलाश में है।

Courtesy : Swatantra Vaartha (Hindi Daily)

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