08 January, 2013

पूजनीय सरसंघचालकजी का शोक संदेश


मा. श्रीकान्त जोशीजी का आकस्मिक निधन मेरे लिये काफी धक्कादायक और वेदनाप्रद घटना है। 4 जनवरी को नागपुर से मुंबई जाने के पूर्व उनकी भेंट हुई थी। हिमोग्लोबिन की कमतरता आने से उन्हें कमजोरी का अनुभव हो रहा था और पूरा जनवरी महिना वह मुंबई में विश्रांती करेंगे ऐसा उन्होंने बताया था। "फिरसे मिलेंगे' इन शब्दों के साथ उन्होंने विदा ली थी। उस वक्त पता भी नही था कि यह आखरी भेंट होगी। 

स्वर्गीय श्रीकान्तजी की निरंतर परिश्रमशीलता, गहरा लोकसंपर्क, दृढता, कार्य के प्रति उनकी समर्पित भावना एवं संघटन शरणता इन्ही गुणों के रूप में वह स्मृतिरूप में हमारे साथ हैं। हमारे खुद के आचरण से यह स्मरणमूर्ति हमें कायम रखनी है। यही हमारा कर्तव्य हैं। उनके पार्थिव वियोग के दुख को सहन कर, प्राप्त कर्तव्य पूर्ण करने का धैर्य हम सबको प्राप्त हो, ऐसी मै प्रार्थना करता हूँ तथा उनके पवित्र एवं प्रेरक स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पण करता हूँ।

सूचना : इसके पूर्व श्रीकान्तजी के निधन संबंधमें जो वार्ता भेजी है, उसमें दो सुधार जरूरी है।
सुधारित वृत्त संलग्न है।

श्रीकान्तजी जोशी नही रहे

मुंबई, दि. 8 जनवरी : रा. स्व. संघ के ज्येष्ठ प्रचारक तथा केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य मा. श्रीकान्तजी जोशी का आज तडके मुंबई में दिल का दौरा पडने से दु:खद निधन हुआ। मृत्युसमय आपकी आयु 76 वर्ष की थी। असम में संघ का 25 वर्ष तक काम तथा पूजनीय तृतीय सरसंघचालक श्री. बालासाहबजी देवरस के स्वीय सहायक के रूप में आप का कार्य स्वयंसेवकों को काफी वर्ष तक स्मरण में रहेगा। आपने हिंदुस्थान समाचार इस संस्था को नवसंजीवनी देकर फिरसे कार्यरत किया। आज सत्रह भाषा में हिंदुस्थान समाचार का कार्य शुरू है। परसों रातको ही आप दिल्ली से मुंबई आये थे। आज तडके 4 बजे आपको दिल का दौरा आया। आपको हॉस्पिटल ले जाने के पूर्व ही आपका निधन हुआ।

मा. श्रीकान्तजी का पार्थिव दादर के पितृछाया कार्यालय में दर्शन हेतु रखा है। रा. स्व. संघ के सरकार्यवाह मा. भैयाजी जोशी की उपस्थिती में दादर श्मशानभूमि में अंत्यसंस्कार किये जायेंगे।
आपके पीछे चार बंधु एवं एक बहन ऐसा परिवार है।

परिचय 

Srikant ji Joshi
21/12/1936 को मुंबई मे जन्म। मूलत: कोंकण के देवरुख निवासी। राज्यशास्त्र एवं अर्थशास्त्र इस विषय में बी. ए. करने के पश्चात आपने कुछ वर्ष आयुर्विमा महामंडल में आपकी सेवा दी। शिवरायजी तेलंग के प्रभाव से आपने संघ प्रचारक के रूप में 1960 में कार्य शुरु किया। महाराष्ट्र के नांदेड में आप प्रचारक के रूप में गये। 1963 को असम प्रांत के तेजपुर विभाग के आप प्रचारक हुए। 67 में गुवाहाटी में विभिन्न जनजाती के सहयोग से विराट हिंदु सम्मेलन का आयोजन हुआ था । उसके आप संघटन सचिव थे। कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक के काम की असम प्रांत की जिम्मेवारी आप के उपर थी। 71 से 86 तक आप असम प्रांत के प्रांत प्रचारक रहे। 87 से 96 तक आप सरसंघचालकजी के स्वीय सहायक थे। 97 से 2004 तक आप अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख रहे। इसी कालावधी में विश्व संवाद केंद्र के प्रारंभिक अवस्था से आपका संबंध था। 2004 से आप कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्यरत थे। अखिल भारतीय संपादक संघ आपकी ही निर्मिति है। हिंदुस्थान समाचार का पुनर्निर्माण केवल आपकी वजह से हो पाया है। आप हिंदी तथा मराठी के अच्छे लेखक थे। असम समस्या के बारे में आपने लिखा हुआ पुस्तक यह दीपस्तंभ माना जाता है।

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